यूक्रेन-अमेरिका खनिज समझौता: ट्रंप की बड़ी घोषणा, लेकिन क्या सच में मिलेगा फायदा?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने घोषणा की है कि यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की शुक्रवार को व्हाइट हाउस में एक महत्वपूर्ण खनिज समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे।

यूक्रेन-अमेरिका खनिज समझौता: ट्रंप की बड़ी घोषणा, लेकिन क्या सच में मिलेगा फायदा?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने घोषणा की है कि यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की शुक्रवार को व्हाइट हाउस में एक महत्वपूर्ण खनिज समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे। ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल की पहली कैबिनेट बैठक के दौरान इस समझौते को “बहुत बड़ा समझौता” बताया।

ट्रंप पहले से ही यह कहते रहे हैं कि अमेरिका ने तीन साल से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध में करदाताओं का बहुत अधिक पैसा खर्च किया है। अब इस समझौते के जरिए अमेरिका को यूक्रेन के दुर्लभ खनिज संसाधनों तक पहुंच मिलेगी, जिनका उपयोग एयरोस्पेस, रक्षा, ग्रीन एनर्जी और परमाणु उद्योगों में किया जाता है।

यूक्रेन के दुर्लभ खनिजों पर अमेरिका की नजर

यह समझौता अमेरिका को यूक्रेन के लाखों टन दुर्लभ खनिज भंडार तक पहुंच प्रदान करेगा, जिनकी अनुमानित कीमत खरबों डॉलर हो सकती है। इनमें शामिल हैं:

  • कोबाल्ट

  • लिथियम

  • तांबा

  • ग्रेफाइट

  • निकेल

  • टाइटेनियम

  • यूरेनियम

ट्रंप ने इस डील की तारीफ करते हुए कहा कि इससे कीव को सैन्य उपकरण और आत्मरक्षा का अधिकार मिलेगा।

अमेरिका की रणनीति से यूरोप नाराज, ट्रांसअटलांटिक संबंधों में खटास

यूक्रेन के दुर्लभ खनिजों पर अमेरिका का यह दबाव यूरोप और अन्य देशों को रास नहीं आ रहा।

  • कई यूरोपीय देशों ने अमेरिका की इस नीति की आलोचना की है।

  • ट्रंप की ‘प्रेशर पॉलिटिक्स’ से अमेरिका और यूरोप के संबंधों में तनाव बढ़ गया है।

  • विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप को इस सौदे से ज्यादा फायदा नहीं मिल सकता क्योंकि यूक्रेन में मौजूद खनिज भंडार की सटीक जानकारी नहीं है।

यूक्रेनी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के पूर्व महानिदेशक रोमन ओपिमाख ने बताया कि “यूक्रेन में दुर्लभ खनिज भंडार का कोई आधुनिक मूल्यांकन नहीं हुआ है।”

क्या ट्रंप के हाथ खाली रह जाएंगे?

ट्रंप के इस बड़े समझौते के बावजूद कई चुनौतियां हैं, जिनके चलते अमेरिका को उतना लाभ नहीं मिल सकता जितना उम्मीद की जा रही है।

1. खनिज भंडार की सटीक जानकारी नहीं:

  • यूक्रेन की भूविज्ञान और उप-भूमि वेबसाइट का वह भाग, जो देश के खनिज भंडार का विवरण देता है, फिलहाल सुलभ नहीं है।

  • वेबसाइट पर लिखा गया है: “मार्शल लॉ के चलते यह जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकती।”

2. युद्ध के कारण बुनियादी ढांचा ध्वस्त:

  • रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते खनन के लिए आवश्यक सुविधाएं और बुनियादी ढांचे नष्ट हो चुके हैं

  • बिजली आपूर्ति बाधित है, जिससे खनन परियोजनाओं का उत्पादन ठप पड़ा है।

3. ऊंची लागत और सुरक्षा जोखिम:

  • एक नई खदान के विकास में 40 लाख डॉलर तक की लागत आ सकती है।

  • पूर्वी यूक्रेन में कोकिंग कोल प्लांट जैसी परियोजनाओं के लिए 10 अरब डॉलर से अधिक निवेश की जरूरत होगी।

  • युद्ध के चलते लगातार सुरक्षा जोखिम बने हुए हैं, जिससे निवेश प्रभावित हो सकता है।

4. राजनीतिक अनिश्चितता:

विशेषज्ञों के अनुसार, भले ही ट्रंप, पुतिन और ज़ेलेंस्की शांति समझौते तक पहुंच जाएं, लेकिन संघर्ष की दीर्घकालिक प्रकृति के कारण भविष्य में भी युद्ध का खतरा बना रहेगा।

निष्कर्ष:

ट्रंप द्वारा घोषित यह खनिज समझौता कागज पर जितना प्रभावशाली दिखता है, वास्तविकता में उतनी आसानी से लागू नहीं हो सकता।

  • युद्ध जारी रहने से अमेरिका को खनन क्षेत्र में तत्काल लाभ मिलने की संभावना कम है।

  • यूरोप और अन्य वैश्विक शक्तियां इस समझौते का विरोध कर सकती हैं, जिससे अमेरिका की स्थिति कमजोर हो सकती है।

  • यूक्रेन में बुनियादी ढांचे की कमी और राजनीतिक अनिश्चितता इस डील को प्रभावी होने से रोक सकती है।

अब देखने वाली बात यह होगी कि यह समझौता कितना सफल होता है या यह सिर्फ एक चुनावी प्रचार बनकर रह जाता है।